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मजदूरों को जागरूक करने औऱ सामाजिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से श्रमिक अधिकारों के लिए संघर्षरत वर्किंग पीपुल्स कोलिएशन और आजीविका ब्यूरो ने अंसगठित क्षेत्र के कामगारों लिए हेल्पलाइन की शुरूआत की है. जिसका नाम इंडिया लेबर लाइन है। इस हेल्पलाइन की शुरूआत साल 2021 में की गई औऱ पहले चरण में इस हेल्पलाइन को देश के पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक औऱ तेंलागना से जोड़ा गया.
मददगार साबित हो रहा है इंडिया लेबरलाइन

मददगार साबित हो रहा है इंडिया लेबरलाइन

आशुतोष मिश्रा

एक मजदूर जो अपनी आजीविका के लिए घर छोड़कर इस आशा के साथ पलायन करता है कि उसे रोजगार मिलेगा औऱ इसी रोजगार के जरिए वो अपने जीवन के बेहतरी का सपना देखता है, जिसमें परिवार के पोषण की जिम्मेदारी के साथ-साथ भूखमरी से पीछा छुड़ाने का संघर्ष शामिल होता है। ऐसे में भारत के गांवो औऱ शहरों में कामगारों की बहुत बड़ी आबादी है, जो आमतौर पर एक जगह से दूसरे जगह काम की तलाश में विस्थापन का मार झेलते है. ये मजदूर ज्यादातर दिहाड़ी पर काम करते हैं. जो दिहाड़ी होती है वो अमूमन काफी कम होती है. इससे मजदूर कभी अपने गरीबी के कुचक्र को तोड ही नहीं पाता.

अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक भारत में कम से कम 92 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते है। इनमें लगभग 12 करोड़ भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों, खेतों या कारखानों में काम करने के लिए हर साल मौसमी पलायन करते हैं. ये ऐसा कार्यबल है कि इनके बिना शायद ही भारत के कारखाने, खेत और निर्माण स्थल संचालित हो पाए। फिर भी उन्हें कम वेतन औऱ खतरनाक परिस्थितियों में काम करना पड़ता है. हमारा क्रूर कॅारपोरेट समाज इनकी आत्मा को मसल कर, हर दिन इन्हें हाशिए पर ढ़केल देता है. उद्योग जगत औऱ सरकारें मिलकर ऐसी परिस्थितियां पैदा करते है कि इन्हें सगंठित होने का मौका ही नहीं मिलता. इसलिए समाज के हर एक मंच से ये मजदूर पूरी तरह अनुपस्थित रहते है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में दशकों से चलती आ रही ठेकेदारी की प्रथा मजदूरों के भविष्य को अंधकार से भर देती है, दिहाड़ी का अच्छा खासा हिस्सा श्रमिकों से छीन लेना ठेकेदारों के लिए सामान्य बात है. सदियों से जारी इन त्रासद स्थितियों के बीच जीने को बाध्य मजदूर वर्ग शायद ही ये कल्पना कर पाता हो कि इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ ये मूक समाज उनके साथ संगठित होकर, एक दिन इस परिस्थिति को बदल देगा. ये सोचना बेमानी है, क्योंकि इसी प्रगतिशील समाज ने श्रमिकों को हमेंशा से गुलामी की जंजीरो से जकड़ कर रखा है. कोरोना काल में तो कार्पोरेट समाज का दोहरा रूप दुनिया के समक्ष प्रतिबिंबित भी हो गया.

कोरोना त्रासदी के दौरान मजदूरों की वीभत्स पीड़ा की तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी है. प्रवासी मजदूरों के बीच जान बचाने और अपने घरों को लौट जाने की देशव्यापी दहशत के बीच सरकार पूरी तरह असंवेदनशील नजर आई. सरकार के इस क्रूरता भरे रवैये ने देश के लाखों मजदूरों को, सड़को पर भूख औऱ प्यास से मरने के लिए छोड़ दिया था. यह त्रासदी भरी घटना आज भी कामगारों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा रही है. सरकान ने तो इसे टीवी डिबेटों में नियति का नाम देकर पल्ला झाड़ लिया है पर बेबस, लाचार, शोषित, दमित श्रमिकों के जेहन में अंनतकाल तक ये भयानक समय जींवत रहेगा कि उसने बिमारी के साथ-साथ भूखमरी की दोहरी मार भी झेली थी।

नेशनल कमीशन फॅार इंटरप्राइजेज इन द अन- आर्गेनाइ्जड सेक्टर के आकड़ो के मुताबिक भारत के GDP (सकल घरेलू उत्पाद) का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्‍सा असंगठित क्षेत्र के उन 50 करोड़ कामगारों के पसीने और कठोर परिश्रम से आता है, जो रेहड़ी-पटरी, कूड़ा बीनने, बीड़ी बनाने, रिक्‍शा चालक, निर्माण, कृषि, चमड़ा कामगार और इसी प्रकार के अनेक अन्‍य कार्यों में लगे हुए हैं। ये आकड़ा झकझोर कर रख देने वाला है. जिन मजदूरों के हाथों में इस देश की अर्थव्यवस्था की बागडोर है, उनके हाथ में एक पाई भी नही है. अधिकांश मजदूर आज भी न्यूनतम मजदूरी से वंचित है.

जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत सरकार के ऐतिहासिक फैसले में कहा था, कि जो न्यूनतम मजदूरी से कम पर काम कर रहा है, वो गुलाम है. इस परिभाषा को राष्ट्रीय मानवाधिकार ने भी मान्यता दी है. ऐसे में सरकार श्रमिकों के लिए कई कल्याणकारी कदम उठाने का भले ही दावा कर रही हो, लेकिन जमीनी हालात इसके बिल्कुल उलट है. क्योंकि सरकारी विभाग में भी न्यूनतम मजदूरी से कम पर काम कराया जा रहा है. आंगनवाड़ी, आशा और मिड-डे मील कार्यकर्ता सरकारी विभागों में बंधुआ मज़दूर की तरह ही हैं. ऐसे में सरकार से सामाजिक न्याय की अपेक्षा रखना अंधेरे में तीर चलाने जैसा है.

लेकिन कुछ संगठन आज भी मजदूर अधिकारों औऱ श्रमिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सरकार और समाज दोनों से संघर्ष कर रहे हैं। उन्हीं मे से एक मजदूरों को जागरूक करने औऱ सामाजिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से श्रमिक अधिकारों के लिए संघर्षरत वर्किंग पीपुल्स कोलिएशन और आजीविका ब्यूरो ने अंसगठित क्षेत्र के कामगारों लिए हेल्पलाइन की शुरूआत की है. जिसका नाम इंडिया लेबर लाइन है। इस हेल्पलाइन की शुरूआत साल 2021 में की गई औऱ पहले चरण में इस हेल्पलाइन को देश के पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक औऱ तेंलागना से जोड़ा गया.

इंडिया लेबरलाइन का मुख्यालय मुंबई में स्थित है, जहां देश के विभिन्न इलाकों से रोजाना सैकड़ों शिकायते आती है. इन शिकायतों में ज्यादातर चोरी हुई मजदूरी से संबधित मामले होते है, कुछ मामलें कार्यस्थल पर दुर्घटना से जुड़े होते है, तो वहीं लेबर कार्ड से जुड़ी जानकारी के लिए भी श्रमिकों के फोन आते है.

इंडिया लेबर लाइन का मुख्य मकसद शहरी इलाकों में अंसगठित कामगारों के अधिकारों औऱ उनकी मजदूरी का संरक्षण करना है.

इसी तरह 12 जनवरीं को हेल्पलाइन पर तमिलनाडु के सेंट थामस रेलवे स्टेशन पर काम कर रहे 11 कामगारों ने शिकायत दर्ज कराई कि, उनकी 39 दिनों की मजदूरी 217300 रूपये का भुगतान ठेकेदार ने नहीं किया है।

ये सभी कामगार झारखंड के सिंघभूम जिले के रहने वाले हैं जो दो महीनें पहले काम की तलाश में तमिलनाडु आए औऱ ‘साकार इंजीटेक प्रा.लि.’ के साइट पर मजदूरी कर रहे थे. कामगारों में शिकायत दर्ज कराने वाले मजदूर करन लागुरी जो कि हेल्पर का काम करते है, उन्होंने बताया की पिछले 39 दिनों से मजदूरी न मिलने से इन कामगारों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

स्थानीय मदद न मिलने के बाद करन औऱ उनके मजदूर साथियों ने इंटरनेट के माध्यम से लेबरलाइन तक पहुंच बनाई और अपनी को समस्या को साझा किया.

शिकायत के बाद हेल्पलाइन ने इस गंभीर मामले को लेकर त्वरित कार्यवाही शुरू कर दी, जिसमें सबसे पहले कंपनी के मालिक को इस शिकायत की जानकारी देकर ये बताया गया कि आप मुख्य मालिक है औऱ ठेकेदार ने अगर तत्काल पेंमेंट नहीं किया तो श्रम कानूनों के तहत आपकी जवाबदेही तय की जाएगी. इस पर मालिक ने कहा कि अभी तक ये मेरे संज्ञान में नहीं आया है, लेकिन मैं अपने अधिकारियों से इस बारे में पूछताछ करके पुष्टि करूंगा। इसके बाद ठेकेदार से भी बात की गई.

मध्यस्थता के बाद ठेकेदार ने मजदूरी का भुगतान अगले 10 दिनों के भीतर करने का आश्वासन दिया. इस दौरान लेबरलाइन के कर्मचारी लगातार मजदूर और मालिक के संपर्क में बने रहे।

बातचीत औऱ मध्यस्थता के उपरांत इस केस को लेबरलाइन ने सुलझा लिया औऱ कामगारों को मजदूरी का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा 192300 रूपये मिल गया। बाकी बचा मजदूरी काम पूरा होने के बाद कंपनी कामगारों के बैंक खाते में स्थानांतरित देगी।

करन लागुरी औऱ उनके 11 साथी मुस्कुराते हुए कहते है कि उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि उनकी मजदूरी मिल गयी और वो सकुशल अपने घर लौट आए है।

इंडिया लेबर लाइन के माध्यम से अबतक सैकड़ो कामगारों को पचास लाख रूपये से ज्यादा चोरी हुई मजदूरी मध्यस्थता के जरिए दिलवाया है. लेबरलाइन के पास ऐसे लगभग 1800 शिकायतें है औऱ 30000 से ज्यादा श्रमिकों की पहुंच इंडिया लेबरलाइन तक है. ऐसें में लेबरलाइन श्रमिक हितों का संरक्षण करने औऱ अंसगठित क्षेत्र के स्वरूप को बदलने में मददगार साबित हो रहा है. मजदूर के हाथों में अब ये टोलफ्री नंबर नामक हथियार है जो उन्हें निडर बना रहा है.